एक बार की बात है एक शिष्य को यह समझ नहीं आ रहा था कि स्वर्ग और नरक मृत्यु के बाद ही प्राप्त होते हैं या इसी जीवन में मिलते हैं जब एक संत से यह प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने समझाने की बजाए उसे साथ लेकर
एक शिकारी के यहां पर गए वह शिकारी कुछ पक्षियों को पकड़कर लाया और उन्हें काटने लगा शिष्य शिकारी के इस बर्ताव को देखकर घबरा गया उसने संत से
कहने लगा मुझसे यह नहीं देखा जा रहा है कृपया आप यहां से चलिए यहां तो नर्क है संत ने कहा कि शिकारी ने कितने जीवो को मारा होगा यह मालूम नहीं है लेकिन फिर भी उसके पास कुछ नहीं है अतः इसके
लिए तो यहां भी नर्क है और मृत्यु के बाद भी नरक है फिर वह संत उस व्यक्ति को एक वेश्या के यहां ले जाने लगे यह देख कर वह व्यक्ति चिल्लाया महात्मा
आप मुझे कहां लेकर जा रहे तब उन संत ने कहा यहां के वैभव को देख, मनुष्य किस तरह अपना शरीर शील और चरित्र बेचता है पर शरीर का सौंदर्य नष्ट होते ही यहां कोई नहीं
आता इनके लिए संसार स्वर्ग की तरह है परंतुउसी शिकारी के समान है इसके बाद में वह संत और वह व्यक्ति एक ग्रहस्थ व्यक्ति के यहां गए वह ग्रहस्थ व्यक्ति बहुत ही परिश्रमी ,बहुत ही संयम शील ,नेक और ईमानदार
व्यक्ति था इस कारण उसके पास कोई दुख नहीं था उन संत ने समझाते हुए कहा यही वह व्यक्ति है जिसके लिए जीवित रहते हुए इस पृथ्वी पर स्वर्ग है और मृत्यु के बाद भी स्वर्ग प्राप्त होगा उस व्यक्ति को
अच्छी तरह समझ आ गया इस संसार में रहते हुए ही हमें कर्मों को भुगतना पड़ता है कर्मों के फलस्वरूप ही हमें स्वर्ग और नरक की प्राप्ति होती है मृत्यु के बाद ही नहीं
मनुष्य के जीवित रहते हुए भी हो जाती है इससे उस व्यक्ति को समझ आ गया इसी जीवन में स्वर्ग और नर्क अपने अपने कर्मों के हिसाब से प्राप्त होता है अतः यह जीवन बहुत ही बहुमूल्य है इसे व्यर्थ में गवाना नहीं
चाहिए उसे कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे दूसरों की भलाई हो सके यह जीवन बहुत ही बहुमूल्य है हमें किसी योग्य संत या सन्यासी की शरण में जाकर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए क्योंकि ज्ञान हीवह वस्तु है जो हमें
अच्छे और बुरे में फर्क करना सिखाती है जब हमें अच्छे बुरे का ज्ञान हो जाता है तब हम बुरे कर्म की तरफ नहीं जाते और अच्छे कर्म ही करते हैं जिसके फलस्वरूप हमें पूर्ण आनंदित जीवन
प्राप्त होता है हमारे जीवन का एक-एक पल खुशियों से भर जाता है अतः स्वर्ग और नरक इसी धरती पर है
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