पूजा भगवान और भक्त के बीच मधुर पलो की अभिव्यक्ति है बिना पूजा के देवता और भक्त के बीच सम्बन्ध जोड़ा नहीं जा सकता और इसके लिए भगवत प्रेम होना आवश्यक तत्व है जिससे मन और ह्रदय का सम्बन्ध जुड़कर उच्च स्थिति प्राप्त कर भगवानऔर भक्त का सीधा सम्बन्ध जुड़कर आत्माऔर परमात्मा का मिलन संभव हो सकता है नहीं तो इस तत्व के बिना सब कुछ बिखर जायेगा पूजा और उपासना दो भिन्न भिन्न वस्तुए है जहा पूजा की बात होती है वहा मन में आदर का भाव प्रकट करने की भावना निहित होती है इस बात का सीधा मतलब यह है कि जिस प्रकार से सांसारिक जीवन में कोई हमारे घर आता है तब हम उससे सबसे पहले नमस्कार कर आदर के साथ घर में बिठाते है फिर पानी के लिए पूछते है फिर चाय नाश्ता करते है और बहुत ही सम्मान देते है बस बिलकुल इसी प्रकार देवता का सम्मान करते है उनके पूजन में सबसे पहले पैरो को धोते है फिर जल अर्पित करते है फिर नाश्ते के रूप में भोग लड्डू ,बर्फी ,हलवा और नाना प्रकार के व्यंजन देवता की पसंदानुसार रखते है इस बीच धूप सुगंध इत्यादि भी स्थान पर लगाते है जिससे वातावरण सुगन्धित बन जाये इस प्रकार का कार्य जो देवताओ को पसंद है ,करने से देव पूजन संपन्न होता है | इसमें पान ,कलावा ,वस्त्र लौंग ,इलायची इत्यादि कई प्रकार की वस्तुओ को पूजन विधान के अनुसार जोड़ा जा सकता है |
उपासना
उपासना पूजा से बहुत ऊपर की चीज है पूजा उस पेड के सामान है जो अभी बहुत ही छोटा सा है उस पर जब वह बड़ा हो जायेगा तब मीठे और स्वाद भरे फल लगेगे इस तरह उपासना पके हुए फल के सामान है अर्थात जब हम पूजा पाठ करते है तब हमारी दिशा और पथ बिलकुल सही होते है और पूजा पाठ करते करते प्रेम की उत्पत्ति होना शुरू हो जातीं है जिस प्रकार से किसी पेड पर फल लगने के वक्त छोटे छोटे हो ,और पूजा कर्म से उत्पन्न हुए प्रेम की मात्रा जब बढ़ने लगती है तब अश्रुओ की बाढ़ आ जाती है और भक्त की आँखों से धारा प्रवाह की तरह निरंतर मोती झरते रहते है यह कोई साधारण आसू नहीं होते इन्हें प्रेमाश्रु कहा जाता है इसी प्रेम के वशीभूत होकर प्रभु दौड़े चले आते है इसके लिए किसी भी उपादान की आवश्यकता नहीं होती किसी प्रकार के पूजा पाठ की भी जरूरत नहीं होती फिर यह सब गौड़ बनकर रह जाता है यह स्टेज बहुत उच्चकोटि की अवस्था है यही पर भक्त और भगवान् का मिलन संभव है यह अवस्था मीरा को प्राप्त थी तभी तो बिष भी अमृत में बदल गया था क्योकि प्रेम की तलवार में दो चीजे नहीं रह सकती या तो बिष रहेगा या अमृत और प्रेम की दिव्य शक्ति में इतना बल होता है जिससे बिष को भी अमृत में बदला जा सकता है, इसी को उपासना कहते है अतः उपासना पूजा से हजार गुना फलदायी है सच कहू तो उपासना तत्व प्राप्त होने पर भगवान् और भक्त एकाकार स्थिति को प्राप्त कर जाते है वह व्यक्ति साधारण न रहकर स्वयं भगवत शक्ति को प्राप्त कर नर से नारायण की स्थिति को प्राप्त कर लेता है और स्वयं नारायण ही बन जाता है |
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